अफीम का गढ़ अफगानिस्तान
विश्व की 90 फीसदी हेरोइन अफगानिस्तान से दुनिया के बाजारों में पहुंचती है। यह बात संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कही गई। अफगानिस्तान में तालिबान का शासन भले ही चला गया हो लेकिन अफीम की खेती बदस्तूर जारी है। अफीम की तीन-चौथाई खेती उन इलाकों में हो रही है जो सरकार के नियंत्रण से बाहर है। गौरतलब है कि तालिबान के लिए पैसे का मुख्य जरिया अफीम की खेती ही है।एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान अफीम की खेती करने वाले किसानों से दस फीसदी कर वसूलते हैं। इस तरह उन्हें दस करोड़ डालर से भी ज्यादा मिल जाते हैं। इसके अलावा हेरोइन बना कर और ड्रग्स बेच कर भी खूब कमाई की जाती है। अफगानिस्तान में अगर नशे का कारोबार और खेती तालिबानी आतंकवादियों लिए आर्थिक संजीवनी बनी हुई है
चीनी सामानों की चमक ......आखिर राज़ क्या है
मैं ने कुछ चीजों का विश्लेष्ण किया तो पाया के कुछ चीजें तो उनके कच्चे माल की कीमत से भी सस्ती हैं | कल ही मैं ने एक लाईटर खरीदा जो आम बीडी पीने वाले अपने पास बीडी सुलगाने के लिए रखते हैं | मुझे यह सुन कर हैरानी हुई के ये सिर्फ दस रुपये का है ! मैं ने दुकानदार से कहा “भाई जी इतना महंगा क्यों”? वो बोले “बाबु जी थोक में एक पीस सात रूपये का पड़ता है | हम भी तो कुछ कमाने के लिए ही बैठे हैं | चलिए आप नौ रुपये दे दीजिये”| हैरानी हुई| दूकान दार इस पर भी पैंतीस प्रतिशत कमा रहा है फिर भी दस रूपये !! और हैरानी की बात ये है कि ये सिर्फ लाईटर नहीं , इस में एक माईक्रो टोर्च भी है जो वक़्त पड़ने पर कहीं भी, कभी भी रौशनी दे सकती है !!!
मैं ने लाईटर के पुर्जे खोल कर अलग अलग किये, उन का विश्लेष्ण किया | १५ भागों में खोल पाया जिनमें तीन पुर्जे, माईक्रो टोर्च, माईक्रो गैस सिलिंडर और माईक्रो गैस लाईटर असेम्बली के रूप में हैं जिन्हें खोलना ठीक नहीं लगा, इनमें और भी माईक्रो आकार के पुर्जे लगे हैं| लीजिये आप भी देखिये :
यदि आप चित्र में देखें तो सबसे बाएं जुड़ा हुआ लाईटर है और दाहिने ओर उसके खुले हुए पुर्जे हैं | ऊपर से नीचे इन पूजों का मूल्याङ्कन करते हैं और साथ में इनकी कम से कम कीमत भी आंकते चलते हैं :
एक पेच = पचास पैसे | गैस रेगुलेटर नोब =पचास पैसे| एल० ई० डी० बल्ब =दो रूपये | टोर्च= दो रूपये| स्प्रिंग= पचास पैसे | स्विच =पचास पैसे | तीन बटन साईज बैटरियां जो हाथ घडी में भी पड़ती हैं और तीस रूपये से कम नहीं होतीं लेकिन यहाँ हम तीनों के = पचास रुपये मान लेते हैं| स्विच कनेक्टर = पचास पैसे | माईक्रो गैस सिलिंडर में नोजल है , रेगुलेटर है , अन्दर एंटी स्पील पाईप है, नीचे रिफिल होल है, वाश्रें हैं, पांच मि० ली० गैस है = कम से कम बीस रुपये | कॉलर = पचास पैसे| माईक्रो गैस लाईटर जिस में वो सभी पुर्जे माईक्रो रूप में लगे हैं जो किचन में इस्तेमाल होने वाले गैस लाईटर में होते हैं = कम से कम बीस रुपये मान लेते हैं | बेस = पचास पैसे| पुश बटन = पचास पैसे | बौडी = एक रुपया | जोड़ = ९९ (निनानवे) रूपये | इस में अगर transportation charge भी जोड़ें तो एक रुपया तो कम से कम है ही | कम से कम एक सौ रूपये !! सौ रुपये!!! और हमें वह चीज दस रुपये में मिल रही है | ये कौन सा कमाल है या करिश्मा है जो चीन कर रहा है ? येही हाल मोबाईल फोन का है | जानी मानी कम्पनियों के फ़ोनों के मुकाबले चीन के मोबाइल चौथाई से भी कम दाम में मिल रहें हैं |
मैं ने और गहराई से मनन किया तो इस नतीजे पर पहुंचा कि चीन का मकसद बहुत दूरगामी है | वोह दुनिया भर के गरीबों का दिल जीतने में लगा है| उसने अभी भी कमुनिस्ट पार्टी का ये विचार नहीं त्यागा है के दुनिया भर के गरीब एक न एक दिन कमुनिज्म को पूजेंगे | इस मकसद को हासिल करने के लिए चीन दुनिया भर के गरीबों की वोह हसरतें पूरी कर रहा जो वो ब्रांडेड उत्पाद के महंगे होने के कारण कभी पूरा नहीं कर सकते | इस मकसद में चीन का हर नेता दिलोजान से सहयोद दे रहा है |
एक हमारे देश के नेता हैं जो वहाँ जाकर भी अपने देश की नाक नीची करने में लगे हैं | वहाँ भी लाल चौक की सियासत दिख रही है | ऐसे नहीं के कुछ सीख कर आओ | केंकड़े की तरह उस की टांग नीचे से खींच कर अपने ही धरातल पर गिराने में लगे रहते हैं जो कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहा हो | देश का पैसा पचास साल से बाहर के बैंकों में ठसा ठस भरते आ रहे हैं| जब दूसरी पार्टी सरकार में आती है तब उन्हें याद आता है |
ऐसे नेताओं का इलाज़ करने में ईश्वर भी असमर्थ दीखते हैं | जय भारत
मुद्रा के निर्माण की कहानी
अगर आप अपने बचपन के शारीरिक स्वरूप को याद करना चाहे तो बड़ी आसानी से याद कर सकते हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आपके गुल्लक में रखे सिक्कों का बचपन कैसा रहा होगा। सिक्कों या मुद्रा का प्रचलन कब, कैसे और क्यों हुआ?
इस प्रश्न के तह में जायेंगे तो हमें पता चलेगा कि पूर्व में हमारे देश में वस्तु विनिमय प्रणाली थी। परंतु इसमें काफी जटिलताएं थीं। जैसे वस्तु के योग्य मूल्य न मिलना, संचयन तथा अन्य राज्यों से व्यापार करने में कठिनाई इत्यादि। किन्तु इन कठिनाइयों को आसान करने के लिए अचानक मुद्राओं का निर्माण हो गया, ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसका क्रमिक विकास हुआ।
प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया।
यहां एक प्रश्न यह भी आता है कि प्रथम सिक्कों का निर्माण किसने करवाया अथवा सिक्कों के निर्माता कौन थे? इस संदर्भ में इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि प्राचीन भारत में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए।
संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था।
इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। विल्सन और प्रिंसेप जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात हुआ। वहीं जान एलन उनकी इस अवधारणा को गलत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘कार्षापण’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।
उत्पत्ति स्थान के अलावा मुद्रा के जन्म काल में भी विद्वानों में मतभेद हैं। ज्यादातर विद्वान मानते हैं कि भारत में सिक्के 800 ई. पू. प्रकाश में आये। वहीं डा. डी. आर. भण्डारकर तथा विटरनित्ज जैसे विद्वान भारत में सिक्कों की प्राचीनता 3000 ई. पू. के आस-पास बताते हैं।
जन्म स्थान और काल में बेशक विवाद हो लेकिन सिक्कों के निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली धातु के संबंध में कोई विवाद नहीं है। सिक्कों के निर्माण के लिए अनेक धातुएं प्रयोग में लाई जाती थीं। इनमें सोना, चांदी तथा तांबा प्रमुख धातुएं थीं। सोना तो भारत में विपुल मात्रा में था। तांबा भी अयस्क के रूप में प्राप्त होता था। परंतु चांदी बहुत कम मात्रा में उपलब्ध थी इसलिए इसका आयात किया जाता था।
सातवाहन वंश ने मुद्रा निर्माण में एक नया प्रयोग किया। उन्होंने मुद्रा निर्माण के लिए सीसे का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। विद्वान पेरीप्लस का विवरण है कि भारतीय लोग सीसे का बाहर से आयात करते थे। इतिहासकार प्लिनी ने इसका समर्थन करते हुए कहा है कि हिन्द यवन शासकों ने एक और धातु मुद्रा निर्माण हेतु प्रयुक्त किया जिसे निकिल के नाम से जाना जाता है।
फिर धूम मचाएगा बाजार
दीपावली के दौरान करोड़ों रुपए का कारोबार करने वाला बाजार लग्नसरा की ग्राहकी के लिए फिर तैयार हो गया है। देव प्रबोधिनी एकादशी से बाजार में फिर से बूम आने की उम्मीद है। यही कारण है कि व्यापारियों ने दुकानों को सजाकर रख लिया है। उन्हें उम्मीद है कि इस बार लग्नसरा फरवरी के बाद तक है इसलिए जोरदार व्यापार की उम्मीद है। दशहरा और फिर दीपावली ने बाजार को गुलजार कर दिया था। ज्वैलरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, बर्तन, फर्नीचर, मोबाइल, कम्प्यूटर सहित सब कुछ बिका। दीपावली बाद से ही बाजार सूना है। हालांकि १७ नवंबर को देव प्रबोधिनी एकादशी तथा इसके बाद के दिनों में होने वाली शादियों के लिए इन दिनों खरीदी तो चल रही है लेकिन ग्राहकों की उम्मीद के मुताबिक नहीं। व्यापारियों को देव प्रबोधिनी एकादशी के बाद से ही बाजार में तेजी आने की उम्मीद है। यही कारण है कि सराफा बाजार, सोमवारिया बाजार, नईसड़क, बस स्टैंड, कसेरा बाजार, कपड़ा मार्केट, छोटा चौक आदि स्थानों पर दुकानें सज चुकी हैं। पंडितों के अनुसार इस बार फरवरी तक विवाह के मुहूर्त हैं इसीलिए इस बार सैकड़ों शादियां होंगी। आसपास के गांवों में भी शादी समारोह की धूम मचेगी।
रविवार को रही रौनक: देव प्रबोधिनी एकादशी से शादियों की धूम शुरू हो जाएगी। शुरुआती अच्छे मुहूर्तों में विवाह कर रहे लोगों ने दीपावली के बाद से ही खरीदी शुरू कर दी लेकिन देव प्रबोधिनी एकादशी के ठीक पहले आए साप्ताहिक हाट के दिन बाजारों में अच्छी भीड़ देखने को मिली।
सब कुछ बुक : लग्नसरा को देखते हुए समारोह वाले घर में अभी से तैयारियां शुरू हो गई हैं। तैयारियों में अपना कदम बढ़ाते हुए उन्होंने हलवाई से लेकर बस, टेंट, घोड़ी सहित सब कुछ बुक कर दिया है। २८ नवंबर को बेटी की शादी करने वाले राजेंद्रसिंह बताते हैं कि ऐनवक्त पर कोई परेशानी न आए इसलिए सब कुछ बुक कर लियाहै
आधुनिक युग में मुद्रा का महत्व

मुद्रा का शाब्दिक अर्थ
अंग्रेजी भाषा में मुद्रा को मनी कहा जाता है. अंग्रेजी भाषा का शब्द मनी लैटिन भाषा के शब्द मोनेटा से लिया गया है.मोनेटा रोम की देवी जूनो का ही दूसरा नाम है.कहा जाता है कि प्राचीन काल में इटली में इस देवी को स्वर्ग की देवी माना जाता था और इसके मंदिर में ही सिक्कों के टंकण (ढलाई ) का काम होता था.इसलिए देवी जूनो के मंदिर में जो मुद्रा बनाई जाती थी उसका नाम 'मोनेटा' रखा गया और इसी को बाद में money कहा गया.कुछ विद्वानों का मत है कि 'money' शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'pecunia' शब्द से हुई है.Pecunia का शब्द Pecus शब्द से बना है और इसका अर्थ पशु संपत्ति से लगाया जाता है.प्राचीन समय में रोम में पशुओं का मुद्रा बके रूप में अधिक प्रयोग होने के कारण मुद्रा एवं पशु का एक ही अर्थ लगाया जाता था.अत: मुद्रा की उत्पत्ति कहाँ से हुई,इस सम्बन्ध में अभी भी बहुत मतभेद है.
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