विश्व की 90 फीसदी हेरोइन अफगानिस्तान से दुनिया के बाजारों में पहुंचती है। यह बात संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कही गई। अफगानिस्तान में तालिबान का शासन भले ही चला गया हो लेकिन अफीम की खेती बदस्तूर जारी है। अफीम की तीन-चौथाई खेती उन इलाकों में हो रही है जो सरकार के नियंत्रण से बाहर है। गौरतलब है कि तालिबान के लिए पैसे का मुख्य जरिया अफीम की खेती ही है।एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान अफीम की खेती करने वाले किसानों से दस फीसदी कर वसूलते हैं। इस तरह उन्हें दस करोड़ डालर से भी ज्यादा मिल जाते हैं। इसके अलावा हेरोइन बना कर और ड्रग्स बेच कर भी खूब कमाई की जाती है। अफगानिस्तान में अगर नशे का कारोबार और खेती तालिबानी आतंकवादियों लिए आर्थिक संजीवनी बनी हुई है
अफीम की खेती के लिए सबसे उपर्युक्त जलवायु ठंड का मौसम होता है। इसके अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी का शुष्क होना जरुरी माना जाता है। एक किलोग्राम अफीम की कीमत भारतीय बाजार में डेढ़ लाख है और जब इस अफीम से हेरोईन बनायी जाती है तो उसी एक किलोग्राम की कीमत डेढ़ करोड़ हो जाती है। भारत में आमतौर पर नक्सली किसानों को अफीम की खेती करने के लिए मजबूर करते हैं। कभी अंग्रेजों ने भी बिहार के ही चंपारण में किसानों को नील की खेती करने के लिए विवश किया था। उसी कहानी को इतिहास फिर से दोहरा रहा है। जब पुलिस अफीम के फसलों को अपने कब्जे में ले भी लेती है तो उनके शिकंजे में केवल किसान ही आते हैं। पुलिस की थर्ड डिग्री भी उनसे नक्सलियों का नाम उगलवा नहीं पाती है।नक्सली नासूर धीरे धीरे पूरे देश में अपना पैर फैला रहा है। कुल मिलाकर आंतरिक युद्ध की स्थिति हमारे देश में व्याप्त है। अगर अब भी नक्सलियों पर काबू नहीं पाया गया तो किसी बाहरी देश को हम पर हमला करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हमारा देश अपने वालों से ही तबाह हो जाएगा। अगर इसे रोकना है तो हमें इनके आर्थिक स्रोत को किसी तरह से भी रोकना ही होगा।
इंटरनेशनल ड्रग कंट्रोल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में अफीम की खेती करने के लिए तालिबान को प्रतिवर्ष 3 अरब यूएस डॉलर का भुगतान किया जाता है. यह राशि दुनिया के कई छोटे देशों के साल भर के बजट से अधिक है. इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में होने वाली गैरकानूनी अफीम की खेती का 90 फीसदी अकेले अफगानिस्तान में होता है. और ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ खेती करने वालों को तालिबान का सरंक्षण प्राप्त होता है. बदले में तालिबान रंगदारी कर वसूलता है. जिसका इस्तेमाल जाहिर है हथियार खरीदने और आतंकी केम्प चलाने मे होता है. तालिबान अफीम की खेती और तस्करी का विरोध करने वालों को मौत के घाट उतार देता है. इस तरह से तालिबान दो तरह से लडाई लडता रहा है. अफीम की कमाई से हथियार खरीद कर वह हमले करता रहा है और अफीम को भारत सहित दुनिया भर के देशों मे पहुँचा कर लोगों को नशे की लत का शिकार बनाकर पाकिस्तान में खौफ का दूसरा नाम बन चुके तालिबान ने भारत के अपराधी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के साथ दोस्ती अफीम की खेती से निकल कर बेगुनाहों का खून बहाने तक फैल चुकी है। अफगानिस्तान के युद्ध ग्रस्त दक्षिणी प्रांत अभी भी अफीम के सबसे बड़े उत्पादक बने हुए हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद अफगानिस्तान में 2008 में 7,700 टन अफीम की पैदावार हुई थीजो 2007 में हुई 8200 टन की पैदावार से केवल छह प्रतिशत कम है।
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